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बिहार की अर्थव्यवस्था - Economy of bihar

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तारों का जन्म एवं विकास। तारामंडल का इतिहास।

तारें - तारें कैसे बनते है एवं इसके रंग के कारण 


 तारे (Stars) ऐसे खगोलीय पिंड हैं, जो लगातार प्रकाश एवं ऊष्मा उत्सर्जित करते रहते हैं। अतः सूर्य भी एक तारा है। 


भार के अनुपात में तारों में 70% हाइड्रोजन, 28% हीलियम, 1.5% कार्बन, नाइट्रोजन एवं निऑन तथा 0.5% में लौह एवं अन्य भारी तत्व होते हैं। तारों को, उनके भौतिक अभिलक्षणों जैसे आकार, रंग, चमक (दीप्ति) और ताप के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। तारे तीन रंग के होते हैं:-


1. लाल (Red)2. सफेद (White) और 3. नीला (Blue)। तारे का रंग पृष्ठ ताप द्वारा निर्धारित होता है। तारे, जिनका पृष्ठ ताप अपेक्षाकृत निम्न होता है, लाल रंग के होते हैं, उच्च पृष्ठ ताप वाले तारे सफेद होते हैं जबकि वे तारे, जिनका पृष्ठ ताप अत्यधिक उच्च होता है, रंग में नीले होते हैं। प्रॉक्जिमा सैन्टॉरी : यह सूर्य के बाद पृथ्वी के सबसे निकट का तारा है। पृथ्वी से इसकी दूरी 4.22 प्रकाश वर्ष है। ऐल्फा सैन्टॉरी पृथ्वी से 4.3 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है।


तारों का निर्माण - तारे कैसे बनते हैं 


सभी तारे (ध्रुवतारा को छोड़कर) रात्रि में आकाश में पूर्व से पश्चिम की ओर चलते प्रतीत होते हैं, क्योंकि पृथ्वी स्वयं अपने धूरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। तारे विपरीत दिशा में पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हुए प्रतीत होते हैं। 


अतः आकाश में तारों की आभासी गति पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूर्णन के कारण होती है। ध्रुव तारा उत्तरी ध्रुव के ठीक ऊपर स्थिर प्रतीत होता है और समय के साथ अपनी स्थिति नहीं बदलता है क्योंकि यह पृथ्वी के घूर्णन की धुरी (अक्ष) पर स्थित होता है। ध्रुव तारा उर्सा माइनर या लिटिल बियर तारा समूह का सदस्य है।


तारों का जन्म एवं विकास (Birth and Evolutionofastar):तारे के निर्माण का कच्चा माल मुख्यतः हाइड्रोजन व हीलियम गैस है। तारे का जीवन चक्रमंदाकिनियों में उपस्थित हाइड्रोजन व हीलियम गैसों के घने बादलों के रूप में एकत्रित होने के साथ आरंभ होता है। जीवनचक्र आकाशगंगा में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैस के संघनन से प्रारंभ होता है जो अन्ततः घने बादलों का रूप धारण कर लेते हैं। इन बादलों को ऊर्ट बादल (Oort clouds) कहा जाता है। 



इन बादलों का ताप -173°C होता है। जैसे-जैसे इन बादलों का आकार बढ़ता जाता है, गैसों के अणुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ता जाता है। जब बादलों का आकार काफी बड़ी हो जाता है तब यह स्वयं के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सिंकुडता चला जाता है. यह सिकुशता हुआ धना गैस पिंड आदि ताग (Protonstar) कहलाता है। आदि तारा प्रकाश उत्सर्जित नही करता है।



तारों का जीवन चक्र

आदि तारे से सारे का निर्माण (Formation of star from protestar) आदि तारा, अत्यधिक सपन गैसीय द्रव्यमान है जो विशाल गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आगे भी संकुचित होता रहता है। ज्योहि आदितारा आगे संकुचित होना आरंभ करता है, गैस के बादल में उपस्थित हाइड्रोजन परमाणु अधिक जल्दी जल्दी परस्पर टकराते हैं। हाइड्रोजन परमाणु के ये टक्कर आदि तारे के ताप को अधिकाधिक बढ़ा देते हैं। 


आदि तारे के संकुचन की प्रक्रिया लाखों वर्षों तक चलती रहती है जिसके दौरान आदि तारा में आन्तरिक ताप, आरंभ में मात्र-173°C से लगभग 10°C तक बढ़ता है। इस अत्यधिक उच्च ताप पर, हाइड्रोजन की नाभिकीय संलयन अभिक्रियाएँ होने लगती हैं। इस प्रक्रिया में चार छोटे हाइड्रोजन नाभिक संलयित होकर बड़े हीलियम नाभिक बनाते हैं और ऊष्मा तया प्रकाश के रूप में ऊर्जा की विशाल मात्रा उत्पन्न होती है। हाइड्रोजन के संलयन से हीलियम बनने के दौरान उत्पन्न ऊर्जा आदि तारा को चमक प्रदान करता है और वह तारा बन जाता है। 



तारे के जीवन का अंतिम चरण (Final Stages of a Star's life): अपने जीवन के अन्तिम चरण के पहले भाग में, तारा लाल (रक्त) दानव प्रावस्था (Red giant phase) में प्रवेश करता है, इसके बाद उसका भविष्य उसके प्रारंभिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है। यहाँ दो स्थितियाँ उत्पन्न होती है यदि तारे का प्रारंभिक द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के तुल्य होता है, तो रक्त दानव तारा अपने प्रसारित बाह्य आवरण को खो देता है और उसका क्रीड सिकुड़ करके श्वेत वामन तारा (White dwarf star) बनाता है जो अंततोगत्वा अंतरिक्ष में पदार्थ के सघन पिंड के रूप में नष्ट हो जाता है। 

तारों का इतिहास


यदि तार की प्रारंभिक द्रव्यमान, सूर्य के द्रव्यमान से काफी अधिक होता है, तो उससे बना रक्त दानव तारा, अधिनव तारे (Supernova star) केरूप में विस्फोट करता है, और इस विस्फोटित अधिनव तारे का क्रोड संकुचित होकर न्यूटन तारा (Neutronstar)अथवा कृष्ण छिद्र (Black hole) बन जाता है।


तारों में ऊर्जा का स्रोत क्या है


रक्त दानव प्रावस्था (Red- Giant phase) आरंभ में, तारों में मुख्यतः हाइड्रोजन होती है समय बीतने के साथ, हाइड्रोजन केन्द्र से बाहर की ओर, हीलियम में परिवर्तित हो जाती है। अब, जब तारे के क्रोड में उपस्थित सम्पूर्ण हाइड्रोजन, हीलियम में परिवर्तित हो जायेगी तो क्रोड में संलयन अभिक्रिया बंद हो जायेगी। संलयन अभिक्रियाओं के बंद हो जाने के कारण, तारे के क्रोड के भीतर दाब कम हो जायेगा, और क्रोड अपने निजी गुरुत्व के तहत संकुचित होने लगेगा। लेकिन तारे के बाहरी आवरण में कुछ हाइड्रोजन बची रहती है, जो संलयन अभिक्रिया कर ऊर्जा विमुक्त करती रहेगी (परन्तु तीव्रता बहुत ही कम होगी) । 



इन सभी परिवर्तनों के कारण, तारे में समग्र संतुलन गड़बड़ हो जाता है और उसे पुनः व्यवस्थित करने के उद्देश्य से, तारे को उसके बाहरी क्षेत्र में प्रसार करना पड़ता है, जबकि गुरुत्वाकर्षण बलों के प्रभाव के कारण उसके क्रोड में संकुचन होता है। अतः सामान्य तारे से रक्त दानव तारे में परिवर्तन में, तारे का क्रोड सिकुड़ता है जबकि बाहरी आवरण में अत्यधिक प्रसार होता है। यह रक्त दानव तारा कहलाता है क्योंकि यह रंग में लाल और आकार में दानवाकार होता है। हमारा अपना तारा सूर्य, अब से लगभग 5000 मिलियन वर्षों के बाद रक्त-दानव तारे में बदल जायेगा। सूर्य का प्रसारित बाहरी आवरण तब इतना बड़ा 1. हो जाएगा कि यह अन्तर ग्रहों जैसे बुध, शुक्र एवं पृथ्वी को भी निगल जाएगा। 


तारा, रक्त दानव प्रावस्था में अपेक्षाकृत थोड़े समय ही रहता है क्योंकि इस अवस्था में यह नितान्त अस्थायी रहता है। पहुँचता है, तो उसका भविष्य उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है। जब रक्त दानव तारा का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के तुल्य होगा तो वह अपना प्रसारित बाह्य आवरण खो देगा, केवल उसका क्रोड बचा रहेगा। यह हीलियम क्रोड गुरुत्वाकर्षण के कारण धीरे-धीरे द्रव्य के अत्यधिक सघन पिंड में संकुचित होगा। 



हीलियम क्रोड के इस अत्यधिक संकुचन के कारण क्रोड का ताप अत्यधिक बढ़ जाएगा व नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं का एक अन्य सेट प्रारंभ हो जाएगा जिसमें हीलियम भारी तत्वों जैसे कार्बन में परिवर्तित होगा, और ऊर्जा की अत्यधिक विशाल मात्रा निर्मुक्त होगी। इस प्रकार के क्रोड के सम्पूर्ण हीलियम थोड़े ही समय में कार्बन में परिवर्तित हो जाएगी और तब पुनः संलयन अभिक्रियाएँ पूर्णतः रूक जाएगी। 



तारे किसके प्रकाश से चमकते हैं


अब ज्योंहि तारे के भीतर उत्पन्न हो रही ऊर्जा बंद हो जाएगी, तारे का क्रोड उसके अपने भार के कारण सिकुड़ने लगेगा और वह श्वेत-वामन तारा (White dwarf star) बन जाएगा। श्वेत वामन एक मृत तारा है, क्योंकि यह संलयन प्रक्रिया द्वारा कोई नवीन ऊर्जा नहीं उत्पन्न करता है। श्वेत वामन तारा, जब- श्वेत वामन तारे का निर्माण (Formationof whitedwarfstar) : जैसा कि ऊपर बताया गया है कि तारा जब रक्त दानव प्रावस्था में अपनी संचित सम्पूर्ण ऊर्जा खो देता है, तो वह चमकना बंद कर देगा। इसके बाद श्वेत वामन तारा कृष्ण वामन (Black dwarf)हो जाएगा और अंतरिक्ष में पदार्थ के सघन पिंड के रूप में विलीन हो जाएगा। श्वेत-वामन तारे का घनत्व लगभग 10,000 kg/m होता है। एक धुंधले श्वेत वामन तारे सीरियस (Serius) नामक चमकीले तारे के निकट देखा गया है।



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