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बिहार की अर्थव्यवस्था - Economy of bihar

बिहार की आर्थिक स्थिति  बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, पिछले दशक में (2004-05 से 2014-15 के बीच) स्थिर मूल्य पर राज्य की आय 10.1%...

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बिहार की अर्थव्यवस्था - Economy of bihar

बिहार की आर्थिक स्थिति


 बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, पिछले दशक में (2004-05 से 2014-15 के बीच) स्थिर मूल्य पर राज्य की आय 10.1% की वार्षिक दर से बढ़ी। हाल के समय में बिहार में सकल राज्य घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2015-16 में 7.5% और 2016-17 में 10.3% रही। ये वृद्धि दरें लगभग 7.0% के राष्ट्रीय औसत से अधिक हैं।



वर्ष 2016-17 में बिहार का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2011-12 के स्थिर मूल्य पर 3.32 लाख करोड़ था जिससे प्रति व्यक्ति आय 29,178 होती है वर्तमान मूल्य पर 2016-17 में बिहार का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 4.38 लाख करोड़ अनुमानित है जिससे प्रति व्यक्ति आय ३ 38,546 ठहरती है। वर्ष 2011-12 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय स्थिर और वर्तमान (2011-12) दोनों मूल्यों पर 23,525 थी। 



पिछले पाँच वर्षों (2011-16) के दौरान बिहार की अर्थव्यवस्था के विकास के वाहक क्षेत्र खनन एवं प्रस्तर खनन (67.5%), विनिर्माण (25.9%), परिवहन, भंडारण और संचार (13.5%) तथा वित्तीय सेवाएँ (10.1%) थे। इन सारे क्षेत्रों की विकास दर 10% से अधिक दर्ज हुई है जो समग्र विकास दर से काफी अधिक है।



प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से पटना, मुंगेर और बेगूसराय सर्वाधिक उन्नतिशील जिले हैं। वहीं, दर्जे में सबसे नीचे के जिले मधेपुरा, सुपौल और शिवहर हैं। अगर हम पटना जिले को छोड़ भी दें, जहाँ राज्य की राजधानी अवस्थित है, तो दूसरे सर्वाधिक उन्नतिशील जिले मुंगेर की प्रति व्यक्ति आय सबसे गरीब जिले शिवहर से तीनगुनी से अधिक है। 



बिहार की अर्थव्यवस्था


 अक्टूबर, 2017 में ग्रामीण भारत की 3.4% मुद्रास्फीति दर के मुकाबले बिहार की मुद्रास्फीति दर सिर्फ 2.2% थी। हालांकि शहरी मुद्रास्फीति दर भारत के लिए 3.8% थी और बिहार के लिए 2.5% । मुद्रास्फीति दरें कम होने के कारण बिहार में मुद्रास्फीति की समग्र दर भी कम है, संपूर्ण भारत के 3.6% के मुकाबले 2.2% कीय वित्तव्यवस्था बिहार लगातार राजस्व अधिशेष बनाए रखने वाला राज्य रहा है राजस्व अधिशेष 2012- 13 के 5,101 करोड़ से बढ़कर 2016-17 में 10,819 करोड़ हो गया वर्ष 2017-18 में राजस्व अधिशेष 14,556 करोड़ हो जाना अनुमानित है।



बिहार में वर्तमान राजस्व शेष काफी धनात्मक रहा है जो 2012-13 के 14,128 करोड़ से बढ़कर 2016-17 में ₹27,804 करोड़ हो गया और 2017-18 के बजट अनुमान में इसके 31,320 करोड़ तक पहुँच जाने का अनुमान जताया गया ।




सकल राज्य घरेलू उत्पाद (2011-12 श्रृंखला) के नए अनुमान के अनुसार 2016-17 में सकल राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 3.8% के स्तर पर पहुँच गया। वर्ष 2016-17 में सकल रोजकोषीय घाटा में 4,418 करोड़ की वृद्धि हुई है जबकि 2015-16 में उसमें मात्र ₹ 883 करोड़ की वृद्धि हुई थी। पूँजीगत परिव्यय और प्रशासनिक तथा सामाजिक क्षेत्र के व्ययों में काफी वृद्धि होने के कारण वित्तवर्ष 2017-18 के बजट अनुमान में उसके 18,112 करोड़ तक पहुँच जाने का अनुमान है। प्राथमिक घाटा 2015-16 के 4,964 करोड़ से बढ़कर 2016-17 में ₹ 8,289 करोड़ पहुँच गया और वर्तमान वर्ष में इसके और भी बढ़कर 8,521 करोड़ हो जाना अनुमानित है।



वर्ष 2016-17 में कुल ऋणग्रहण ₹ 21,577 करोड़ था जो गत वर्ष से 3,194 करोड़ अधिक था । इस रकम का उपयोग आर्थिक विकास को टिकाए रखने के लिए सामाजिक और भौतिक अधिसंरचना के निर्माण में किया गया है। वर्ष 2016-17 में बकाया देनदारी गत वर्ष के सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 30.6% से बढ़कर 31.7% हो गई वित्तवर्ष 2017-18 में उसके और भी बढ़कर 33.4% हो जाने का अनुमान है। वहीं, 2016-17 में व्याज भूगतान ₹8,191 करोड़ था जो राजस्व प्राप्ति का 7.8% था।


Bihar Economy in hindi 

राज्य सरकार का कर राजस्व 2016-17 में 8,251 करोड़ बढ़ा, जबकि पिछले साल २16.659 करोड़ बढ़ा था। इसी प्रकार करेतर राजस्व 217 करोड़ बढ़ा, जबकि पिछले साल 628 करोड़ बढ़ा था। मद्य निषेध नीति के प्रभाव के बावजूद (वह कीमत जिसे सरकार सामाजिक लाभ की तुलना में काफी कम मानती है), कर और करेतर राजस्व, दोनों की वृद्धि में ठहराव संभवतः राज्य में आर्थिक गतिविधियों के समग्र धीमापन का सूचक है जिसका आंशिक कारण नोटबंदी है जिसने स्थावर संपदा और अनौपचारिक क्षेत्र को गंभीर नुकसान पहुँचाया है।



वर्ष 2016-17 में केन्द्रीय करों में राज्य का हिस्सा 9,958 करोड़ और सहायता अनुदान ₹993 करोड़ बढ़ा जिससे राज्य सरकार के राजस्व में समग्र वृद्धि ₹9,462 करोड़ हो गई। राज्य सरकार के कुल राजस्व में राज्य सरकार के अपने राजस्व का हिस्सा 25% और केन्द्रीयकरों का हिस्सा 56% था जबकि शेष 19% हिस्सा केन्द्रीय अनुदानों का था। 



वर्ष 2012-13 से 2016-17 के बीच विकासमूलक राजस्व व्यय 79% बढ़कर 35,817 करोड़ से ₹ 64,154 करोड़ हो गया, जबकि विकासेतर राजस्व व्यय इस अवधि में अपेक्षाकृत कम गति से (47%) बढ़ा और 23,801 करोड़ से 34,935 करोड़ हो गया। वर्ष 2016-17 के कुल पूँजीगत परिव्यय र 27,208 करोड़ में से 21,526 करोड़ (79%) का व्यय आर्थिक सेवाओं पर किया गया-सड़कों एवं पुलों की परिवहन अधिसंरचना के निर्माण पर 5,326 करोड़ (25%), विद्युत परियोजनाओं पर 5,739 करोड़ (27%), सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण पर ₹1,796 करोड़ (8%) तथा शेष अन्य क्षेत्रों में। सामाजिक सेवाओं पर पूँजीगत परिव्यय 3,592 करोड़ था।



 इसमें से 24% हिस्सा ( 870 करोड़) राज्य में स्वास्थ्य अधिसंरचनाओं में सुधार पर 32% ( 1,164 करोड़) जलापूर्ति एवं स्वच्छता में सुधार पर और 30% (1,074 करोड़) शैक्षिक अधिसंरचना में सुधार पर खर्च हुआ। विगत वर्षों में पूँजीगत परिव्यय का हिस्सा सकल राज्य घरेलू उत्पाद में जैसे बढ़ा है वैसे ही कुल व्यय में भी बढ़ा है जबकि राजस्व व्यय को अबाध बढ़ने नहीं दिया गया है। वर्ष 2012 -13 से 2016-17 के बीच विकासमूलक राजस्व व्यय का गैर वेतन घटक 75% से बढ़कर 85% हो गया जो दर्शाता है कि बिहार में लोक वित्त का प्रबंधन विवेकपूर्ण ढंग से किया जा रहा है जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है और राज्य के लोगों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।


थि एवं सहवर्ती क्षेत्र - 93.6 लाख हेक्टेयर विस्तार वाले बिहार राज्य में तीन स्पष्ट कृषि जलवायु क्षेत्र मौजूद हैं-(1) 13 जिलों वाला उत्तर-पश्चिम जोन, जिसमें 1040 से 1450 मिमी. तक वार्षिक वर्षा होती है और मिट्टी बलुई दोमट है; (2) 8 जिलों वाला उत्तर-पूर्व जोन जिसमें वार्षिक वर्षापात 1200 मिमी, से 1700 मिमी. के बीच रहता है और मिट्टी दोमट या चिकनी दोमट है; तथा (3) 17 जिलों वाला दक्षिण जोन जिसमें 990 से लेकर 1300 मिमी. वार्षिक वर्षा होती है और मिट्टी बलुई दोमट, दोमट, चिकनी दोमट और चिकनी मिट्टी है।



राज्य में फसल सधनता 2010-11 के 1.37 से 2014-15 में 1.45 हो गई फलतः इस अवधि में सकल बुआई क्षेत्र में थोड़ी वृद्धि हुई है जो 2010-11 के 71.94 लाख हेक्टेयर से 2014 15 में 76.73 लाख हेक्टेयर हो गया।


राज्य में अनाजों का कुल उत्पादन 2011-12 के 173.64 लाख टन से बढ़कर 2016-17 में 180.99 लाख टन हो गया। मुख्य अनाजों में मक्के का उत्पादन 2015-16 के 25.17 लाख टन से बढ़कर 2016-17 में 38.46 लाख टन हो गया जो 52.8% की वृद्धि दर्शाता है। वर्ष 2014-15 में बिहार में उर्वरकों की कुल खपत 41.66 लाख टन थी जो तीन बर्षा में 11.4% बढ़कर 2016-17 में 45.83 लाख टन हो गई किसानों द्वारा प्रयुक्त उर्वरकों में यूरिया सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि उर्वरकों की पूरी खपत में इसका लगभग 43.1% हिस्सा है।


 सकल ऋण प्रवाह 2012-13 में 21,566 करोड़ था, जो 2016-17 में बढ़कर 41,076 कराड़ हो गया। वर्ष 2016-17 में तीन प्रमुख ऋण स्रोतों का हिस्सा इस प्रकार था-व्यावसायिक बैंक 60.9%, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक 34.7% तथा केन्द्रीय सहकारी बैंक 4.4%। यह दर्शाता है कि बिहार में कृषि ऋण का बड़ा हिस्सा व्यावसायिक बैंक उपलब्ध कराते हैं।



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