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बिहार की अर्थव्यवस्था - Economy of bihar

बिहार की आर्थिक स्थिति  बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, पिछले दशक में (2004-05 से 2014-15 के बीच) स्थिर मूल्य पर राज्य की आय 10.1%...

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बिहार का इतिहास : History Of Bihar

बिहार : प्रागैतिहासिक कालीन बिहार


बिहार के दक्षिणी भाग में आदिमानव के निवास के साक्ष्य मिले हैं। सबसे पुराने अवशेष आरंभिक पूर्व प्रस्तर युग के हैं जो अनुमानतः 1,00,000 ई० पू० काल के हैं। इनमें पत्थर की कुल्हाड़ियों के फल, चाक और खुरपी के रूप में प्रयोग किये जाने वाले पत्थर के टुकड़े हैं। से अवशेष मुंगेर और नालन्दा जिलों में उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाण युग के अवशेष मुंगेर में मिले हैं। यहीं से परवर्ती पाषाण युग के अवशेष भी मिले हैं जो पत्थर के छोटे टुकड़ों से बने हैं।



मध्य पाषाण युग (9000 से 4000 ई० पू०) के अवशेष सिंहभूम, रांची पलामू, धनबाद और संथाल परगना, जो अब झारखंड में हैं, से प्राप्त हुए हैं। ये छोटे आकार के पत्थर के बने सामान हैं जिनमें तेज धार और नोक है। नव पाषाण युग के अवशेष उत्तर बिहार में चिरांद (सारण जिला) और चेचर (वैशाली जिला)से प्राप्त हुए हैं। इनका काल सामान्यतः 2500 ई० पू० 1500 ई० पू० के मध्य निर्धारित किया गया है। इनमें न केवल पत्थर के अत्यन्त सूक्ष्म औजार प्राप्त हुए हैं, बल्कि हड्डी के बने सामान भी मिले हैं।



ताम्र पाषाण युग में पश्चिम भारत में सिंध और पंजाब में हड़प्पा संस्कृति का विकास हुआ। बिहार में इस युग के परवर्ती चरण के जो अवशेष चिरांद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (गया), मनेर (पटना) से प्राप्त हुए हैं उनसे आदिमानव के जीवन के साक्ष्य और उसमें आनेवाले क्रमिक परिवर्तनों के संकेत मिलते हैं।उत्खनन में प्राप्त मृद्भांड और मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े भी तत्कालीन भीतिक संस्कृति पर प्रकाश डालने में सहायक सिद्ध हुए हैं।




ऐतिहासिक काल में बिहार


उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई० पू०) में आर्यों का प्रसार पूर्वी भारत में आरंभ हुआ। लोहे का उपयोग भारत में 1000 से 800 ई० पू० के मध्य आरंभ हुआ। लगभग इसी समय आर्यों का बिहार में विस्तार भी आरंभ हुआ।


800 ई० पू० के आस-पास रची गयी 'शतपथ ब्राह्मण' में गांगेय घाटी के क्षेत्र (बिहार का क्षेत्र भी इसमें शामिल था) में आर्यों द्वारा जंगलों को जलाकर और काटकर साफ करने की चर्चा मिलती है। छठी शताब्दी ई० पू० में उत्तर भारत में विशाल, संगठित राज्यों का अभ्युदय हुआ।


जिन सोलह महाजनपदों और लगभग दस गणराज्यों की चर्चा इस काल में बौद्ध ग्रंथों में मिलती है, उनमें से तीन महाजनपद-अंग, मगध और लिच्छवि गणराज्य बिहार के क्षेत्र में स्थित थे। इनके संबंध में विस्तृत जानकारी अंगुत्तर निकाय में मिलती है।

बिहार


प्रो० आर० डेविस की पुस्तक 'बुद्धिस्ट इंडिया' के अनुसार 16 महाजनपद थे-1. काशी, 2. कौशल, 3. अंग, 4. मगध, 5. वज्जि, 6. मल्ल, 7. चेदि, 8. वत्स, 9. कुरु, 10. पांचाल, 11. मत्स्य, 12. सुरसेन, 13. अस्सक (अश्मक), 14. अवन्ति, 15. गांधार और 16. कंबोज ।


गंगा नदी के उत्तर में लिच्छवियों का गणराज्य था जो विभिन्न गणराज्यों का महासघ या। इसकी सीमाएँ वर्तमान वैशाली और मुजफ्फरपुर जिलों तक फैली हुई थी और इसकी राजधानी वैशाली थी।अग का राज्य वर्तमान मुंगेर और भागलपुर जिलों के क्षेत्र में फैला था। इसकी राजधानी चम्पा (वर्तमान चम्पानगर) भागलपुर के समीप थी।


मगध के अधीन वर्तमान पटना, नालंदा और गया जिलों के क्षेत्र थे। इसकी राजधानी गिरिव्रज अथवा राजगृह (वर्तमान राजगीर) थी। - पुरापाषाण काल के औजार बिहार के गया, मुंगेर, पटना आदि स्थानो से मिले हैं। इन स्थानों आयों के आगमन के पूर्व बिहार


से पुरापाषाण युग के चाकू, खुरपी, कुल्हाड़ी आदि के अवशेष प्राप्त हुए हैं। मुंगेर के भीम बांध से पुरापाषाण युग के औजार मिले हैं। गया के जेठियन से पुरापाषाण युग के कुल्हाड़ी, चाकू आदि प्राप्त हुए हैं।


सोनपुर और सारण के चिरांद से हड़प्पायुगीन काले और लाल मृदभांड के अवशेष प्राप्त हुए हैं। ऐसे अवशेष भागलपुर, राजगीर व वैशाली से भी प्राप्त हुए है। ये सामग्रियां 1000 ई०पू० की हैं जो बिहार में ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता के प्रमाण हैं। उत्तर पाषाण युग में बिहार सांस्कृतिक रूप से विकसित अवस्था में था। लोगों ने गुफाओं से निकलकर कृषि कार्य शुरू किया तथा पशुओं को पालने लगे लोग इस समय तक मृदभांड बनाना, खाना पकाना और संचय करना आदि सीख गये थे।


ऋग्वेद के अनुसार आर्यों के आगमन के पूर्व बिहार में सभ्यता संस्कृति का विकास हो चुका था। ऋग्वेद में बिहार क्षेत्र के लिए 'कीकट' एवं 'व्रात्य" शब्दों का उल्लेख हुआ है। वाल्मीकि रामायण में 'मलद और 'करूना' शब्द संभवतः बक्सर क्षेत्र के लिए प्रयुक्त हुआ है। राम ने यहां राक्षसी ताड़का का वध किया था।




बिहार में आयों का आगमन


कुछ इतिहासज्ञों के अनुसार आर्य भारत में ईरान से आये तथा ऋग्वैदिक काल (1500 ई०पू०-1000 ई० पू०) में वे पंजाब हरियाणा क्षेत्र में बसे ।


ऋग्वेद में बिहार के लिए कीकट क्षेत्र और अमित्र शासक प्रेमगंद का उल्लेख है तथा उसमें अंग और मगध क्षेत्र में जाने की इच्छा व्यक्त की गयी है। वैसे तो कुछ आर्य ऋग्वैदिक काल में भी बिहार आ चुके थे, किन्तु मुख्य रूप से आयों ने उत्तर वैदिक काल में, खासकर अथर्ववेद की रचना के दौरान, बिहार में प्रवेश किया।


आर्यों के सांस्कृतिक वर्चस्व का प्रारंभ ब्राह्मण ग्रंथों की रचना के समय हुआ। शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय अरण्यक, वाजसनेयी संहिता, सांख्यायन अरण्यक, कौशीतकी अरण्यक, पंचविश ब्राह्मण, अग्ण्यक ग्रंथों, गोपथ ग्रंथों, महाभारत आदि में वर्णित घटनाओं से तत्कालीन बिहार के विषय में काफी जानकारी मिलती है।


विदेह में आर्यों के बसने के बाद शतपथ ब्राह्मण की रचना हुई क्योंकि इसमें ही विदेह का सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है। विदेह माधव द्वारा अपने पुरोहित गौतम राहुगण की अग्नि का पीछा करते हुए वर्तमान गडक

नदी (सदानीरा नदी) तक पहुंचने की बात शतपथ ब्राह्मण में ही कही गयी है।



महाजनपद काल में बिहार


छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत के 16 महाजनपदों में से तीन-वर्जि (लिच्छवी गणराज्य), मगध और अंग बिहार के क्षेत्र में थे ।


आधुनिक उत्तर बिहार को प्राचीन काल में वज्जि नाम से भी जाना जाता था । वर्जि महाजनपद आठ राज्यों का एक संघ था, जिसमें वज्जि के अतिरिक्त वैशाली के लिच्छवी. मिथिला के विदेह तथा कुंडग्राम के ज्ञातृक विशेष रूप से विख्यात थे।


वैशाली उत्तरी बिहार के वर्तमान वैशाली जिले में स्थित आधुनिक बसाढ़ है। मिथिला की पहचान नेपाल की सीमा में स्थित जनकपुर धाम नामक नगर से की जाती है। यहाँ पहले राजतंत्र था परंतु बाद में गणतंत्र स्थापित हो गया।



वैशाली के कुंडग्राम की ज्ञातृक जाति के लोग भी संघ के सदस्य थे 24वें तीर्थकर महावीर जैन ज्ञातृक ही थे। शालिग्राम के उग्र जाति भी संघ के सदस्य थे । भोगनगर की जाति भोग, अयोध्या या विदेह से आकर इक्ष्वाकु जाति तथा हस्तिनापुर सेआयी कौरव जाति के लोग संघ के सदस्य बने थे वज्जि संघ के प्रधान एवं लिच्छवी सरदार चेतक या चेटक की बेटी का विवाह ज्ञातृक कुल में हुआ था, जहां महावीर पैदा हुए।


चेटक की पुत्री चेल्हना का विवाह मगध नरेश बिंबिसार के साथ हुआ । वैशाली में प्रसिद्ध नर्तकी 'आम्रपाली' थी, जो वैशाली की नगरवधू' के पद पर आसीन हुई थी। आम्रपाली का कथित संबंध तत्कालीन मगध नरेश अजातशत्रु के साथ था। अपने प्रवास के दौरान भगवान बुद्ध ने आम्रपाली के निवास पर भोजन किया था। आम्रपाली ने बौद्ध संघ को एक उद्यान समर्पित किया था। मगध सम्राट अजातशत्रु ने वज्जि संघ में फूट डलवाई और उस पर आक्रमण करके वज्जि संघ को पराजित कर दिया तथा मगध साम्राज्य की सीमा का विस्तार किया ।



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