भारतीय अर्थव्यवस्था : अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था का परिचय, इतिहास तथा संरचना |
अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था : भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास
अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था - Economics and Economy- अर्थशास्त्र मानव की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करता है। मानव द्वारा सम्पन्न वैसी सारी गतिविधियाँ जिनमें आर्थिक लाभ या हानि का तत्व विद्यमान है, आर्थिक गतिविधियां कही जाती हैं।
अर्थव्यवस्था एक अधूरा शब्द है अगर इसके पूर्व किसी देश या किसी क्षेत्र-विशेष का नाम न जोड़ा जाए। वास्तव में जब हम किसी देश को उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के संदर्भ में परिभाषित करते हैं, तो उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं। आर्थिक क्रिया किसी देश के व्यापारिक क्षेत्र, घरेलू क्षेत्र तथा सरकार द्वारा दुर्लभ संसाधनों के प्रयोग, वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोग, उत्पादन तथा वितरण से संबंधित है।
अर्थव्यवस्था की परिभाषा: न्यून, मध्य तथा उच्च आय विश्व बैंक के वर्गीकरण के अनुसार प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के आधार पर विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को निम्न चार वर्गों में बाँटा गया है-
1.नीची आय वाली
2.नीची मध्य आय वाली
3.उच्च मध्य आय वाली
4.उच्च आय वाली
निजी क्षेत्र और बाजार के सापेक्ष राज्य व सरकार की भूमिका के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में किया जाता है
भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना : भारतीय अर्थव्यवस्था क्या है
1.पूँजीवादी अर्थव्यवस्था : इस अर्थव्यवस्था में क्या उत्पादन करना है, कितना उत्पादन करना है और उसे किस कीमत पर बेचना है, ये सब बाजार तय करता है, इसमें सरकार की कोई आर्थिक भूमिका नहीं होती है।
2. राज्य अर्थव्यवस्था : इस अर्थव्यवस्था की उत्पत्ति पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की लोकप्रियता के विरोध स्वरूप हुआ। इसमें उत्पादन, आपूर्ति और कीमत क्या फैसला सरकार द्वारा लिया जाता है। ऐसी अर्थव्यवस्थाओं को केंद्रीकृत नियोजित अर्थव्यवस्था कहते हैं जो गैर-बाजार अर्थव्यवस्था होती है।
राज्य अर्थव्यवस्था की दो अलग-अलग शैली नजर आती है, सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं जबकि 1985ई. से पहले चीन की अर्थव्यवस्था को साम्यवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं। समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर सामाजिक नियंत्रण की बात शामिल थी और अर्थव्यवस्था को चलाने में सरकार की बड़ी भूमिका थी वहीं साम्यवादी अर्थव्यवस्था में सभी सम्पत्तियों पर सरकार का नियंत्रण था और श्रम संसाधन भी सरकार के अधीन थे।
3. मिश्रित अर्थव्यवस्था : इसमें कुछ लक्षण राज्य अर्थव्यवस्था मौजूद होते हैं, तो कुछ लक्षण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के।के यानी सरकारी एवं निजी क्षेत्र का सहअस्तित्व । द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उपनिवेशवाद के चंगुल से निकले दुनिया के कई
देशों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया। इनमें भारत, मलेशिया एवं इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं
अर्थव्यवस्था का क्षेत्र : भारतीय अर्थव्यवस्था का परिचय
मानव के वे तमाम क्रियाकलाप जो आय-सृजन में सहायक होते हैं, उन्हें आर्थिक क्रिया की संज्ञा दी गई है। आर्थिक क्रिया किसी देश के व्यापारिक क्षेत्र, घरेलू क्षेत्र तथा सरकार द्वारा दुर्लभ संसाधनों के प्रयोग, वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोग, उत्पादन तथा वितरण से संबंधित है। अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों को तीन श्रेणियों यें बाँटा गया है, जिन्हें अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक कहा जाता है।
प्राथमिक क्षेत्र: अर्थव्यवस्था का यह क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होती है। इन गतिविधियों का संबंध भूमि, जल, वनस्पति और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों से है । कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, खनन और उनसे संबद्ध गतिविधियों को इसके अंतर्गत रखा जाता है। इसमें संगठन श्रम की प्रकृति को रेड कॉलर जॉब के जरिए संकेतित किया जाता है।
द्वितीयक क्षेत्र : अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को अपनी गतिविधियों में कच्चे माल की तरह उपयोग करता है द्वितीयक क्षेत्र कहलाता है। जैसे : लोहा इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि । वास्तव में इस क्षेत्र में विनिर्माण कार्य होता है, इस कारण ही इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है। इसमें लगे कुशल श्रमिकों को ह्वाइट कॉलर जॉब के अंतर्गत स्थान दिया जाता है, जबकि उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से संलग्न श्रमिकों को ब्ल्यू कॉलर जॉब के अंतर्गत रखा जाता है।
तृतीयक क्षेत्र : इस क्षेत्रक में विभिन्न प्रकार की सेवाओं का उत्पादन किया जाता है; जैसे बीमा, बैंकिंग, चिकित्सा, शिक्षा, पर्यटन आदि । इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। तृतीयक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सबसे अधिक योगदान करता है।
आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास : भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं
आर्थिक संवृद्धि : आर्थिक संवृद्धि से अभिप्राय किसी समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में होने वाली वास्तविक आय से है। सामान्यतया यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP), सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही हो तो हम कहते हैं कि आर्थिक संवृद्धि हो रही है। अर्थात आर्थिक संवृद्धि उत्पादन की वृद्धि से संबंधित है जिसमें कि परिमाणात्मक परिवर्तन होते हैं, जो कि श्रम शक्ति, उपभोग, पूँजी और व्यापार की मात्रा में प्रसार के साथ होता है।
आर्थिक विकास : आर्थिक विकास की अवधारणा आर्थिक संवृद्धि की धारा से अधिक व्यापक है । आर्थिक विकास सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक गुणात्मक एवं परिमाणात्मक सभी परिवर्तनों से संबंधित है। आर्थिक विकास तभी कहा जायेगा जब जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो। आर्थिक विकास की माप में अनेक चर सम्मलित किये जाते हैं, जैसे—आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक संस्थाओं के स्वरूप में परिवर्तन, शिक्षा तथा साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा, पोषण का स्तर, स्वास्थ्य सेवाएं, प्रति व्यक्ति उपभोग वस्तुएँ।
अतः आर्थिक विकास मूलतः मानव विकास ही है। भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने आर्थिक विकास को अधिकारिता तथा क्षमता के विस्तार के रूप में परिभाषित किया है, जिसका तात्पर्य जीवन-पोषण, आत्म-सम्मान तथा स्वतंत्रता है। महबूब उल हक ने आर्थिक विकास को 'गरीबी के विरुद्ध लड़ाई' के रूप में परिभाषित किया चाहे वह गरीबी किसी रूप की हो।
आर्थिक विकास की माप : विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की माप तथा विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की तुलनात्मक स्थिति ज्ञात करने के पाँच दृष्टिकोण मिलते हैं
1.आधारभूत आवश्यकता प्रत्यागम : इसका प्रतिपादन विश्व बैंक ने किया।
2. जीवन की भौतिक गुणवत्ता निर्देशांक प्रत्यागम : इसका प्रतिपादन मौरिस डेविड मौरिस ने 'ओवरसीज डेवलपमेंट कौंसिल' के कहने पर किया। इस विधि में किसी भी देश के रहन-सहन के स्तर यानी आर्थिक विकास की तुलना के लिए तीन आँकड़ों शिशु मृत्यु दर, वयस्क साक्षरता दर एवं 1 वर्ष आयु की जीवन प्रत्याशा (Life expectancy rate at age 1) के औसत मान का उपयोग किया जाता है। (0 से 100 के पैमाने पर)।
3. क्रय शक्ति समता विधि : इस विधि का सबसे पहले प्रयोग सन् 1993 ई. में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने किया और आजकल विश्व बैंक इसी विधि का प्रयोग विभिन्न देशों के रहन-सहन के स्तर की तुलना के लिए कर रहा है।
4.निवल आर्थिक कल्याण :निवल आर्थिक कल्याण=सकल राष्ट्रीय उत्पाद - (उत्पादन की छिपी लागत तथा आधुनिक नगरीकरण की हानियाँ + अवकाश तथा गृहणियों की सेवाएँ)।
5.मानव विकास सूचकांक (HDI) : इस सूचकांक का प्रतिपादन 1990 ई. में यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) से जुड़े अर्थशास्त्री महबूब उल हक तथा उनके सहयोगियों ने किया।मानव विकास सूचकांक के तीन आधारभूत आयाम हैं—ज्ञान, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा तथा क्रयशक्ति समायोजित प्रति व्यक्ति के रूप में प्रदर्शित जीवन-निर्वाह का स्तर। मानव विकास सूचकांक का उच्चतम मान 1.0 तक हो सकता है।
धन्यवाद। यह कौन सी क्लास की किताब है और इस किताब का नाम क्या है. क्या आप मुझे इस book की PDF भेज सकते हो?
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