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बिहार की अर्थव्यवस्था - Economy of bihar

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मौलिक अधिकार क्या है? What is fundamental Rights?

मौलिक अधिकार : मौलिक अधिकार पर निबंध 


इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। इसका वर्णन संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद-35) है। संविधान के भाग-3 को भारत का अधिकार पत्र (Magnacarta)कहा जाता है। इसे मूल अधिकारों का जन्मदाता भी कहा जाता है। 



मौलिक अधिकारों में संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात के दौरान जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है। मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1978 ई.) के द्वारा सम्पत्ति का अधिकार (अनुच्छेद-31 एवं 19क) को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद-300(a) के अन्तर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।





मौलिक अधिकार कितने हैं? List of fundamental rights


मौलिक अधिकार सामन्यतः 6 हैं जो इस प्रकार हैं - 

  •  समता या समानता का अधिकार-अनुच्छेद-14 से 18

  •  स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद19 से 22 

  •  शोषण के विरुद्ध अधिकार-अनुच्छेद-23 से 24

  •  धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद-25 से 28

  •  संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकारअनुच्छेद-29 से 30

  •  संवैधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद-32



1. समता या समानता का अधिकार-Right to equality 


अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता) : इसका अर्थ यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एकसमान कानून बनाएं तथा उन पर एकसमान लागू करेगा।


अनुच्छेद-15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध): राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग एवं जन्म-स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जायेगा।


अनुच्छेद-16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता): राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। अपराध-अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग।


अनुच्छेद-17 (अस्पृश्यता का अन्त) : अस्पृश्यता के

उन्मूलन के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।


अनुच्छेद-18 (उपाधियों का अन्त) सेना या विधा संबंधी सम्मान के सिवाय अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जायेगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है।


Fundamental rights of Indian Constitution



2. स्वतंत्रता का अधिकार - Right to freedom 


भारतीय संविधान मे 6 तरह की स्वतंत्रता का अधिकार, 


  • अनुच्छेद 19(a) बोलने की स्वतंत्रता ।
  • अनुच्छेद 19 (b) शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता ।
  • अनुच्छेद 19 (c) संघ बनाने की स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद-19 (d) देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता ।
  • अनुच्छेद 19 (e) देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसनेकी स्वतंत्रता । अपवाह जम्मू कश्मीर)
  • अनुच्छेद-196) कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता ।


FUNDAMENTAL RIGHTS


अनुच्छेद-20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण):इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है-1.किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी।2. अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी न कि पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत।3. किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।


अनुच्छेद-22 (कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण): अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो, तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है-1.हिरासत में लेने का कारण बताना होगा, 2. 24 घंटे के अंदर (आने-जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जायेगा, 3.उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा।





3.शोषण के विरुद्ध अधिकार


अनुच्छेद 23 (मानव के व्यापार और वायु क्रम का प्रतियेध):इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद-बिक्री. बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया हुआ श्रम निधि ठहराया गया है. जिसका उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है




अनुच्छेद-24 (बायको के नियोजन का प्रतिषेध) 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों, खानों या अन्य किसीजोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।



4.धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार


अनुद 25 (अंतःकरण की और प्रेम के अयाध रूप से मानने आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता ) कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है



अनुच्छेद -26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता )व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना व पोषण करने विधि सम्मत सम्पत्ति के अर्जन, स्वामित्व व प्रशासन का अधिकार है


अनुच्छेद 27: राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक सम्प्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है। 



अनुच्छेद-28 राज्य विधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्म पद को बात सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते।




5. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार


अनुच्छेद-29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण): कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जायेगा।



अनुच्छेद-30 (शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक कर्मों का अधिकार): कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी।



6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार 


संवैधानिक उपचारों के अधिकार' को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है।

अनुच्छेद-32: के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्रवाइयों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को पांच तरह के समादेश  निकालने की शक्ति प्रदान की गयी है-

1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus),

2, परमादेश(mandamus),

3, प्रतिपेध लेख (prohibition),

4. उत्प्रेषण(certiorari),

5, अधिकार पृच्छा लेख (quo-warranto)


1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण - यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है, जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है। इसके द्वारा न्यायालय बंदीकरण करनेवाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाये गये व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अन्दर उपस्थित करे, जिससे न्यायालय

बंदी बनाये जाने के कारणों पर विचार कर सके।


2.परमादेश -परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है,जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। इस प्रकार के आज्ञापत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है।


3.प्रतिषेध-लेख: यह आज्ञापत्र सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों द्वारा निम्न न्यायालयों व अन्द्धन्याविक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहाँ कार्रवाही न करें, क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है।


4.उत्प्रेषण: इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लम्बित मुकदमों के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजे।


5. अधिकार पृच्छा-लेख: जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है, जिसके रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है, तो न्यायालय अधिकार-पृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक वह इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता, वह कार्य नहीं कर सकता है।


तो यह है भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार जिसके बारे में मैंने आपको आज इस पोस्ट मे बताया और अगर यह पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें। 

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